Diet & Weight Loss | आज की कहानी हर एक लड़की के लिए जो खुद के पैरों पर खड़ी है ।
नमस्कार,
आज की कहानी हर एक लड़की के लिए जो खुद के पैरों पर खड़ी है। पर उसकी शादी नहीं हो पा रही है, क्योंकि बहुत बार ऐसा बोला जाता है कि वह काम करने के लिए घर से बाहर निकलती है। हमें ऐसी लड़की चाहिए जो हमारे मां-बाप का ख्याल रखें।
सबसे पहली बात महत्वपूर्ण में आपके माता-पिता का ख्याल रखने के लिए आप खुद या आपके माता-पिता जो कि स्वस्थ है वही जिम्मेदार होने चाहिए।
दूसरी बात किसी को जबरन कोई भी चीज उनके मन विरुद्ध करने के लिए कोई भी नहीं बोल सकता।
परोपकार हमें बचपन से सिखाया जाता है पर उसका सदुपयोग होना चाहिए। या उसका उपयोग कहां होना चाहिए यह बहुत मायने रखता है।
लड़की पढ़ी हुई होनी चाहिए।
घर के हर काम उसे आने चाहिए।
अगर बाहर निकल कर काम करना है तो घर का पूरा ख्याल रखकर वह बाहर निकले।
(अगर उसमें कुछ जान बचती है तो।)
हालांकि आजकल की लड़कियां यह सब चीजें नहीं मानती पर फिर भी जब शादी के लिए रिश्ते आना बंद हो जाता है तो किसी भी हद तक कॉम्प्रोमाइज करना यह एक ही ऑप्शन उनके पास बचता है।
जो खुद के पैरों पर खड़ी है अपनी हर फाइनैंशल need को बिना किसी के सपोर्ट अगर वह पूरी करती है। तो उससे बाहर निकलने का मौका मिलना चाहिए। घर के पुरुष सदस्य से भी वह ज्यादा काबिल हो।
हमारे यहां कामों का विभाजन बहुत पूर्व कालीन काल से चलता रहा है। जैसे जैसे दिन बदलते हैं या युग बदलते हैं। बदलाव हर एक के घर में मन में काम करने के अंदाज में आना चाहिए।
आजकल लड़के लड़कियां दोनों में जहां हम अंतर नहीं करते हैं वहां जब कोई लड़की देखने जाता है अरेंज मैरिज मे ऐसी बाते कितनी सही मानी जा सकती है।
एकत्रित कुटुंब पद्धती, घर के बुजुर्गों का ख्याल रखना इसमें बिल्कुल भी बुराई नहीं है। घर सबका होता है सब ने उसे सुंदर और साफ रखना जरूरी ।
किस्सा हर घर का है शायद। जब शादी की बात आती है।
इस तरह की चीजें सामने आती है और इस सदी में तो क्या करना चाहिए लड़कियोंने ।
जिनकी शादियां नहीं जम रही है वह कॉम्प्रोमाइज करती है और जो कंप्रोमाइज नहीं करती उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ता है।
बड़ा कॉम्प्लिकेशन वाला मुद्दा है। लेकिन हर एक ने कभी ना कभी यह चीजों का एक्सपीरियंस शायद खुद के लिए या हमारे जानने वालों में से किसी के साथ किया है।
मैं बड़ी अचंभित हो जाती हूं। जब ऐसी चीजें सुनती हूं। हमारा कल्चर हमारे जरूरतो के अनुसार बदलता है।
अस्फा क्लिनिक आई थी अपनी मां के साथ।
वजन कम करना ही चाहती थी क्योंकि उसके मां को लगता था वजन कम हो जाएगा शायद तो बेटी की शादी हो जाएगी हमेशा का किस्सा।अस्फा आईटी कंपनी में जॉब करती थी। सुंदर, सुशील,अपने माता-पिता का ख्याल रखने वाली जिम्मेदार लड़की थी अस्फा।
सिर्फ और सिर्फ शादी ना होने की वजह से डिप्रेशन में आ गई थी। शायद अपने माता पिता का दर्द समझती थी । पर कुछ न कर पाने का दुख उसे बड़ा सता रहा था। काउंसिलिंग के दौरान बहुत रोई अस्फा।
लोग क्या क्या कहते हैं? हमारा नजरिया क्या है?
क्या महसूस होता है?
सभी चीजों का लंबा डिस्कशन चला।
मां-बाप सोचते हैं बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तो बाकी की चीजें जो है वह बहुत सहज हो जाएगी।
पर वक्त और किस्मत के पहले किसी को कुछ नहीं मिलता। एक ही चीज़ हमारे हाथ मे है । उस वक्त का इंतजार करना और उस पथ के और चलते रहना।
काउंसलिंग और बहुत सारी बातों के बाद।
ने यह निष्कर्ष निकाला, की वेट लॉस करने से आपको फिटनेस मिलेगा उसके बारे में आप सोचिए ,शादी होगी कि नहीं ?
लड़का मिलेगा कि नहीं?
यह बातें शायद इतनी जरूरी नहीं है इतनी जरूरी आपकी हेल्थ है।
उसे भी यह बात अच्छी लगी और हमारी जर्नी ,जो है डाइट जर्नी स्टार्ट हो गई।
आज की कहानी यहीं खत्म करती हूं और अल्लाह से दुआ करती हूं की अस्फाको मनचाहा दूल्हा मिले।
सच्ची कहानियां जो मैं खुद जीती हूं।
हर एक कहानी के दुख और सुख दोनों में जीते हू।
कहानियां ही तो है जो बहुत बिखरी पड़ी है हमारे आस पास।
जरूरत है तो उस नजर की।
आज कहानी को यही अल्पविराम देती हूं और फिर आपसे मिलने आऊंगी कोई और नई कहानी के साथ।
धन्यवाद
डॉ सोनल कोलते आहार विशेषज्ञ
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